Thursday, February 26, 2009

आत्मविश्लेषण करना सीखिए

आत्मविश्लेषण की आदत डालिए। इससे कई मानसिक कष्ट दूर हो सकते हैं। मनुष्य एक ऐसा प्राणी है, जो बहुत कुछ जानने के बावजूद अपने विषय में बहुत कम जानता है। बड़े-से-बड़ा पुस्तकीय ज्ञान रखनेवाले व्यक्ति भी यह दावा नहीं कर सकते कि वे क्षण-क्षण अपने भीतर होनेवाले परिवर्तनों अथवा भावनात्मक तरंगों का रहस्य भलीप्रकार समझे हैं। हर व्यक्ति अपने भीतर एक विशाल सागर की तरह होता है। बाहर जो घटनाएँ होती रहती हैं और भीतर सोच-विचार की जो आँधियाँ चलती रहती हैं, वे अपनी प्रतिक्रिया में इस विशाल सागर को हर क्षण उथल-पुथल से भरती रहती हैं। जिस प्रकार समुद्र नहीं बता सकता कि हवा की किस तरंग ने उसमें कौनसी लहर पैदा की है या जो लहर अभी-अभी तट से जाकर टकराई है, उसे किस दिशा से आनेवाले झोंके ने उत्पन्न किया था? इसी तरह मनुष्य भी कई बार यह नहीं समझ पाता कि क्रोध, ईर्ष्या अथवा असंतोष का जो तीखा ज्वार उसके भीतर उत्पन्न हुआ है, उसके मूल में कौनसे कारण विद्यमान हैं। इसीलिए कई बार वह कहीं का गुस्सा कहीं निकालते देखा जाता है, कहीं की खीज कहीं व्यक्त करता दिखाई देता है।
शताब्दियों से भारत के ग्रामीण अंचलों में एक रोचक कहावत प्रचलित रही है- 'हाथियों की लड़ाई से सरकंडों का नाश।' अर्थात् हाथी शक्ति में अपने बराबर के दूसरे हाथी पर तो अपना क्रोध निकाल नहीं पाता, मैदान में खड़े उन सरकंडों को रौंदने लगता है, जो हमले का जवाब हमले से देने की स्थिति में नहीं होते। हम अक्सर देखते हैं कि बॉस के कटु व्यवहार से खीझा हुआ कर्मचारी अपना गुस्सा पत्नी या बालक पर उतारता है। किसी अन्य बात पर ताव खाया हुआ अधिकारी अपनी झुँझलाहट अधीनस्थ कर्मचारी पर निकालता है और कड़े स्वभाव के पति की प्रताड़ना से दु:खी महिला अपनी घुटन घर की नौकरानी या बेटी पर उतारकर हलकी हो जाती है। इन सभी स्थितियों में उसे पता ही नहीं होता कि वह जो कुछ कर रही है, उसका असली कारण क्या है? ये सब लोग वे हैं, जो स्वयं अपना विश्लेषण करना नहीं जानते। विश्लेषण करना जानते होते तो इस प्रकार मानसिक तनाव से ग्रस्त न होते और इस तनाव की अभिव्यक्ति उस तरह न होती, जिसका संकेत हमने ऊपर की पंक्तियों में किया है।
परीक्षा-परिणाम देखकर पड़ोस का पंद्रह वर्षीय किशोर बुरी तरह विचलित हो गया। ज्योति को दु:ख है कि गणित में उसके नंबर सोहन से इतने कम क्यों आए हैं? ज्योति को लगता है कि परीक्षक ने उसके साथ अन्याय किया है, जान-बूझकर अंक कम दिए हैं। पक्षपात किया गया है अंक देने में। वह तनाव में है और रात-भर सो नहीं पाया है। कारण?
कारण यही है कि ज्योति को आत्मविश्लेषण करना नहीं सिखाया गया है। सिखाया गया होता तो वह निष्पक्ष होकर अपना और सोहन का तुलनात्मक अध्ययन कर सकता था। यह पता लगा सकता था कि गणित में सोहन ने अधिक परिश्रम करके उससे बेहतर योग्यता अर्जित की थी। सोहन प्रश्नपत्र में उससे अधिक सवाल सही ढंग से हल करके आया था। ज्योति अपना विश्लेषण आप करने की स्थिति में होता तो परीक्षाफल आने पर इस तरह तनावग्रस्त न हो जाता, जैसे कि हुआ। वह परीक्षक पर संदेह करने से बच जाता। स्वयं को गणित में अधिक परिश्रम करने के लिए तैयार करता।
ब्रह्मपाल इस बात को लेकर लगातार तनाव में रहता है कि कार्यालय में उसका अधिकारी जितनी निकटता उसके सहयोगी प्रेमदत्त के प्रति दिखाता है, उसके प्रति नहीं दर्शाता, जबकि वह प्रेमदत्त की तुलना में कहीं अधिक कार्यकुशल एवं वरिष्ठ है। यह समस्या भी उसी आत्मविश्लेषण की है, जिसकी हम ऊपर चर्चा करते आ रहे हैं। ब्रह्मपाल भीतर-ही-भीतर प्रेमदत्त से ईर्ष्या करता है, उसे हानि पहुँचाने के प्रयास में लगा रहता है। उसकी इच्छा है कि किसी-न-किसी तरह वह प्रेमदत्त को बॉस की दृष्टि से दूर करने में सफल हो जाए। यह स्थिति उसे मानसिक पीड़ा से भर देती है, उसे व्याकुल करती है। कारण?
कारण यही है कि ब्रह्मपाल आत्मविश्लेषण करने में सक्षम नहीं है। उसमें इतनी योग्यता ही नहीं कि वह इस सच्चाई का पता लगा सके कि वे क्या गुण हैं, जो प्रेमदत्त में हैं, उसमें नहीं हैं। यह ज्ञात हो जाता तो ब्रह्मपाल न तो मानसिक वेदना और ईर्ष्या का शिकार होता और न प्रेमदत्त से अपने संबंध बिगाड़ने की सीमा तक आता।
विश्वास कीजिए कि मानसिक वेदना की अधिकतर स्थितियाँ अज्ञानता के कारण उत्पन्न होती हैं। यदि मनुष्य अपने भीतर का विश्लेषण कर पाए और यह पता लगा सके कि वह जिस भावनात्मक ज्वर से घिरा हुआ है, उसका वास्तविक आधार क्या है तो उसे उस मानसिक पीड़ा से नहीं गुज़रना पड़ता, जिससे गुज़रने पर वह बाध्य हुआ।
दिन-रात ऐसी स्थितियाँ आती हैं, महिलाओं के सामने भी और पुरुषों के सामने भी, जब उन्हें पूर्ण रूप से निष्पक्ष होकर अपना अध्ययन करने की ज़रूरत होती है। किंतु प्राय: लोग ऐसा नहीं कर पाते। एक महिला पड़ोस में आया बहुमूल्य सामान देखकर ईर्ष्या से पीडि़त हो सकती है। एक पुरुष किसी कार्य में अपने साथी की सफलता और अपनी विफलता पर खीझकर दुर्भावना का शिकार हो सकता है; और दोनों ही स्थितियों में उसे मनोवैज्ञानिक दु:ख झेलने पड़ सकते हैं। लेकिन प्रश्न यह है कि पुरुषों और महिलाओं के जीवन में ऐसे अवसर यदि आते हैं तो क्यों आते हैं?
कारण वही है कि जनसामान्य आत्मविश्लेषण नहीं कर पाता। वह इस सत्य का पता नहीं लगा पाता कि उनके अपने भीतर दूसरे पक्ष की तुलना में किस योग्यता का अभाव है? व्यवहार या आचरण में किस चीज़ की कमी है?
स्वेट मार्डेन ने ठीक कहा है कि मनुष्य के लिए दूसरे की आलोचना करना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल काम स्वयं अपनी आलोचना करना है। यदि मनुष्य अपनी सही आलोचना करने और उस आलोचना के आधार पर अपना सुधार करने की विधि अपना ले तो उसकी बहुत सी मानसिक परेशानियाँ दूर हो सकती हैं।
विडंबना यह है कि मानव-प्राणी जितना अपने-आपको नज़रअंदाज़ करता है, उतना किसी और को नहीं करता। वह अपने ग़लत आचरण के लिए भी तर्क एवं औचित्य ढूँढ़ लाता है, जबकि दूसरों के सही व्यवहार में भी खोट निकाल लेने से नहीं चूकता। मनुष्य की यह प्रवृत्ति स्वयं उसी के लिए दु:ख का कारण बनती है।
दूसरों से पहले अपनी आलोचना कीजिए। आत्मविश्लेषण की आदत डालिए। अपार पुस्तकीय ज्ञान अर्जित करने के बाद भी यदि आप अपनी आंतरिक परिस्थितियों से परिचित नहीं है तो मानसिक विकृतियाँ किसी भी समय आप पर आक्रमण कर सकती हैं। जब भी आप व्याकुल हों, पीडि़त हों, मनोवैज्ञानिक रूप से असंतुलित हों, तब सबसे पहले यह ज्ञात करें कि चिंता और व्याकुलता का जो प्रत्यक्ष कारण आपके सामने है, क्या वास्तव में वही उसकी जड़ है, अथवा प्रत्यक्ष कारण के पीछे कोई और कारण छिपा हुआ है, जो तात्कालिक रूप से आपको दिखाई नहीं दे रहा है। आत्मविश्लेषण के उपरांत जब सही तथ्य आपके सामने आ जाएँ तो पि र दूसरे पक्ष को जाँचने से पहले अपने ऊपर आलोचनात्मक दृष्टि डालिए कि कहीं आपका तो कोई खोट नहीं है? ऐसा करेंगे तो बहुत सी ऐसी परेशानियों से बच जाएँगे, जो आपको परेशान करती हैं, लेकिन निराधार होती हैं।
आप देर रात अपने किसी मित्र से मिलने जाते हैं, किंतु वह अपके साथ वैसी आत्मीयता का व्यवहार नहीं करता, जिसकी आशा आपने की थी। मित्र के व्यवहार को सहन न करके आप बोझिल मन से वापस लौट आते हैं और यह सोचकर तनाव का शिकार हो जाते हैं कि मित्र ने आपके साथ वैसा व्यवहार नहीं किया, जिसकी आप उससे आशा करते थे। इस पीड़ा में आप रातभर सो नहीं पाते।
काश! आप अपना और स्थिति का विश्लेषण कर सकते। यदि कर सकते तो आप आसानी से इस परिणाम पर पहुँच सकते थे कि मित्र से मिलने का जो समय आपने चुना था, वह सही नहीं था। आप अपने मित्र की दिनचर्या से परिचित होने के बावजूद असमय उसके घर गए। हो सकता है कि उस समय वह बैडरूम में जाने के लिए तैयार हो और आपको कम-से- कम समय देना उसकी विवशता हो। यह विश्लेषण आपकी मानसिक वेदना दूर कर सकता था।
डा.गिरिराजशरण अग्रवाल

1 comment:

Unknown said...

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